लालची सेठ की कहानी हिंदी में
Lalchi seth ki kahani in hindi
एक मंदिर में एक ब्राम्हण रहता था। जो दिन रात भगवान् की सेवा में लगा रहता। ब्राम्हण की एक पुत्री थी रूपवती। ब्राम्हण रोज सवेरे उठकर भगवान् की पूजा-पाठ में लग जाता। रूपवती की भी भगवान् में बड़ी आस्था थी। बचपन से ही वह भगवान् की भक्ति में लगी रहती। भगवान् के लिए पुष्प व् पूजन सामग्री एकत्रित करना उसी की ज़िम्मेदारी थी।
समय के साथ-साथ रूपवती बड़ी हुई। अब ब्राम्हण को रूपवती के विवाह की चिंता सताने लगी थी। ब्राम्हण ने सोचा क्यों ने में मंदिर में कथा करना शुरू कर दूँ, जिससे की चढ़ावे में कुछ पैसा आने से मुझे थोड़ी आमदनी भी हो जाएगी और गाँव वालों में भी भगवान् के प्रति आस्था बढ़ेगी।
बस यही सोचकर ब्राम्हण ने अगले दिन से ही मंदिर प्रांगण में ही कथा करना शुरू कर दिया। ब्राम्हण का मानना था की चाहे गाँव वाले उसकी कथा न सुने, लेकिन मंदिर में विराजे भगवान् तो उसकी कथा सुंनेगे ही।
अब ब्राम्हण की कथा में कुछ गाँव वाले आना शुरू हो गए। एक दिन गाँव का ही एक कंजूस सेठ मंदिर में भगवान् का दर्शन करने के लिए आया और दर्शन करने के बाद मंदिर की परिक्रमा करने लगा। तभी उसे मंदिर के अन्दर कुछ आवाज़े सुनाइ दी। उसने मंदिर की पीछे की दिवार पर कान लगा कर सुना तो मंदिर के अन्दर दो लोग एक दुसरे से बात कर रहे थे।
उसने बड़े धयान से सुना… मंदिर के अन्दर भगवान् राम और हनुमान जी आपस में बात कर रहे थे। भगवान् राम हनुमान जी से ब्राम्हण की कन्या के कन्यादान के लिए दो सो रुपयों का प्रबंधन करने का कह रहे थे। भगवान् राम का आदेश पाकर हनुमान जी ने ब्राम्हण को दो सौ रूपए देने की बात भगवान् राम को कही।
सेठ जी ने जब भगवान् राम और हनुमान जी की बात सुनी तो कथा के बाद वे ब्राम्हण से मिले और कथा से होने वाली आय के बारे में पूछा। सेठ जी की बात सुनकर ब्राम्हण बोला – सेठ जी, कथा में बहुत ही कम लोग आ रहें हैं, भला इतने कम श्रद्धालुओं में क्या आय होगी।
सेठ जी ने ब्राम्हण को आश्वासन देते हुए कहा की आज कथा में जो भी आय हो वह ब्राम्हण उन्हें दे दें, इसके बदले में सेठ जी ब्राम्हण को सौ रूपए दे देंगे| ब्राम्हण को भला क्या एतराज़ होता, उन्होंने सेठ जी की बात मान ली। उधर सेठ जी यह सोच रहे थे की ब्राम्हण को आज कथा में हनुमान जी दो सौ रुपए देने वाले हैं जो में ब्राम्हण से ले लूँगा और बदले में उसे सौ रूपए दे दूंगा। जिससे की मेरी सौ रुपए की कमाई हो जाएगी।
शाम को कथा समाप्त होने पर सेठ जी ब्राम्हण के पास आए। उन्हें यकीन था की आज ब्राम्हण को दो सौ रूपए की आय हुई होगी। ब्राम्हण सेठ जी को देखते ही सेठ जी की पास आया और बोला – “सेठ जी आज तो काफी कम भक्त कथा में आए थे जिससे बहुत ही कम आय हुई है। बस दस रूपए ही इकठ्ठा हो पाए हैं!”
सेठ अब करता भी क्या। उसने ब्राम्हण को दिए वचन के अनुसार ब्राम्हण को सौ रूपए दे दिए और इस सौदे में तो सेठ जी को नुकसान हो गया। सेठ जी हनुमान जी पर बहुत गुस्सा हुए की उन्होंने ब्राम्हण को दौ सौ रुपयों की मदद भी नहीं की और भगवान् को दिया अपना वचन भी पूरा नहीं किया।
सेठ जी को हनुमान जी पर बहुत गुस्सा आया। वे गुस्से में मंदिर के अन्दर गए और उन्होंने हनुमान जी की मूर्ति को धक्का दे दिया। सेठ जी ने जैसे ही हनुमान जी की मूर्ति को धक्का देने के लिए अपना हाथी मूर्ति पर रखा हाथ वहीँ चिपक गया| भला हनुमान जी के पकड़ से कोई बच सकता है।
तभी सेठ जी को फिर एक आवाज़ सुनाई दी। अब भगवान् राम हनुमान जी से ब्राम्हण को दौ सौ रूपए देने के बारे में पुछ रहे थे। भगवान् राम का आदेश सुनकर हनुमान जी बोले “प्रभु..सौ रूपए की मदद तो हो गई है, बाकि बचे सौ रुपयों के लिए सेठ जी को पकड़ के रखा है। जैसे ही वे सौ रूपए देंगे उनको छोड़ देंगे|
सेठ जी ने जैसे ही भगवान् राम और हनुमान जी के बीच की बात सुनी उन्होंने सोचा, “अगर गाँव वालों ने देख लिया की में हनुमान जी की मूर्ति को धक्का मार रहा था और हनुमान जी ने मुझे पकड़ लिया है तो मेरी बहुत बदनामी होगी।”
बस फिर क्या था, “सेठ जी ने हनुमान जी को ब्राम्हण को सौ रूपए देने का वादा किया”
हनुमान जी ने सेठ की बात मानकर उसका हाथ छोड़ दिया और सेठ जी ने अपने वादे अनुसार ब्राम्हण को सौ रूपए दे दिए और सर पकड़ कर चलते बने।
साथियों, इसीलिए कहा गया है ज्यादा लोभ हमेशा हानिकारक होता है। सेठ को उसके लालच की सज़ा मिल गई और ब्राम्हण को उसकी भक्ति का फल। इसीलिए कहा गया है जैसी करनी वैसी भरनी।
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कैसी लगी ये कहानी जरूर बताइएगा।
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